अमीर मौलवी कैसे बनें?
अमीर मौलवी कैसे बनें?
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ग़़रीबी के ख़ात्मे के लिए, मैं मौलवी के लिए यह कोर्स लिख रहा हूँ। अगर इसे #उलमा_ए_हक़ मदरसे में मौलवी के कोर्स में शामिल करके पढ़ाएं तो बहुत अच्छा वर्ना मौलवी साहब इसे ख़ुद पढ़ लें। इसे समझने के लिए किसी #उस्ताद की ज़रूरत नहीं है। आप जो पढ़ें, उस पर अमल करें, बस।
उलमा हक़ की बड़ी क़ुर्बानियाँ हैं और उनका ज़िक्र उतना नहीं होता, जितना कि उनका हक़ है लेकिन उनकी एक बड़ी खि़दमत ऐसी है जिसका ज़िक्र बिल्कुल नहीं होता और वह है भूख और ग़रीबी का ख़ात्मा। वह है विदेशों से डॉलर, रियाल और दीनार लाकर भारतीय मुद्रा #रुपए को मज़बूत करना। हमने यह देखा है कि जब भी किसी भूखे परिवार का कोई बूढ़ा या बच्चा उनकी खि़दमत में आ गया। उसकी भूख का ख़ात्मा हमेशा के लिए हो गया। बहुत से बच्चे उनसे पढ़कर उलमा ए हक़ बन गए और उनके परिवार से भी भूख और ग़रीबी हमेशा के लिए ख़त्म हो गई। कुछ ग़रीब घरों के बच्चे ऐसे हैं, जिन्होंने उलमा ए हक़ की ज़िन्दगियों से सीख हासिल नहीं की। वे ज़रूर मौलवी बनकर भी #ग़रीब ही रह गए हैं।
अगर आप एक ग़रीब घर से हैं और मौलवी बन चुके हैं और किसी #मस्जिद या मदरसे में 3-5 हज़ार रूपये महीने की नौकरी कर रहे हैं और कम आमदनी की वजह से आप अपने माँ-बाप को हज नहीं करवा पा रहे हैं या अपनी बहनों की शादी में कोई मदद नहीं कर पा रहे हैं या अपने ग़रीब भाईयों की मदद नहीं कर पा रहे हैं और आप दुखी होकर सोचते हैं कि काश मैं ग़रीब न होता और मैंने किसी #कान्वेंट #स्कूल से पढ़ा होता तो आज मैं ज़्यादा सैलरी वाली नौकरी कर रहा होता। जिससे मैं अपने माँ-बाप की और भाई बहनों की मदद करने के क़ाबिल होता तो
आपका ऐसा सोचना दीनी और दुनियावी नज़रिए से, दोनों तरह से ग़लत है।
दीनी नज़रिया यह है कि इमामत करना या दीन की तालीम देना कोई नौकरी नहीं है बल्कि अल्लाह की तरफ़ से एक बड़ा सम्मान है। जिसके लिए वह अपने ख़ास बन्दों को चुनता है। इस रास्ते में आने वाली मुश्किलों पर सब्र करने पर वह मरने के बाद जितना बड़ा और जितना अच्छा बदला देगा, वह इंसान की सोच से बड़ा होगा। किसी न किसी तरह आज गुज़र ही जाएगा और आखि़रत का फल हमेशा बाक़ी रहेगा।
आप इस दूसरी दलील से भी ख़ुद को तसल्ली दे सकते हैं कि हदीसों में आया है कि 'जिसकी तक़दीर में जितनी रोज़ी है,वह उसे मिलकर रहेगी। मेरी #तक़दीर में इतनी ही रोज़ी होगी, जितनी मिल रही है। इसलिए दुखी होना या ज़्यादा रूपये के लिए कोई ग़लत काम करना ठीक नहीं है। जो भी हाल है, इसी में राज़ी रहना चाहिए।' यह साधारण मौलवियों की सोच होती है। अगर आप साधारण मौलवी हैं तो आप ऐसा सोचकर इत्मीनान (सन्तोष) कर सकते हैं।
दुनियावी नज़रिया यह है कि कान्वेंट एजुकेशन के बाद भी हज़ारों लोग बेरोज़गार हैं और उनकी शादी भी नहीं हो रही है। जो भी उनकी गर्लफ्रेंड बनती है, वह कोक पर पलने वाले उन फुसफुसे युवाओं को छोड़ कर भाग जाती है। जिसकी वजह से बहुत से नौजवान ख़ुदकुशी करके मर गए हैं। बहुत से कान्वेंट एजुकेटेड लड़के जिगोलो बन गए हैं और वे अपना जिस्म बेचकर रुपए कमा रहे हैं। रब का शुक्र है कि आप रोज़गार पर हैं और ग़रीबी के बावुजूद आपका निकाह भी हो चुका है और आपकी पत्नी आपकी वफ़ादार भी है और आपके बच्चे भी हो चुके हैं। ये वे नेमतें हैं जो पीएच०डी० वालों को हासिल नहीं हैं। ऐसा सोचकर आप ख़ुद को तसल्ली दे सकते हैं।
दुनियावी नज़रिए से दूसरी बात यह कही जा सकती है कि रब ने इंसान को अक़्ल, मौक़े और साधन सब दिए हैं। जिनका इस्तेमाल करके बहुत लोग ग़रीबी से निकलकर ऊपर आए हैं। बहुत से मौलवी भी ग़रीबी से ऊपर उठे हैं। आप भी अपनी अक़्ल का इस्तेमाल करो और जो मौलवी ग़रीबी से ऊपर उठ चुके हैं। उनके पैटर्न को फ़ोलो करो। जो उन्होंने किया। वही आप करो और बिल्कुल जायज़ तरीक़े से अपनी इन्कम बढ़ा लो।
ग़रीब से अमीर बने मौलवियों के पैटर्न के अहम बिन्दु
1. आम मौलवी से ख़ास मौलवी बनो।
2. एक रजिस्टर्ड संस्था बनाओ।
3. सरकार की हिमायत करो या जनता के बहुमत की आवाज़ बनो।
4. आम लोगों के सामने वलियों की निशानी पेश करो।
5. लोगों की ज़रूरतों को पहचानो और अपनी बातों में उनका हल पेश करो और उनकी हाजतों के लिए दुआएं करो।
6. किसी सुपर स्टार #सूफ़ी #आलिम #शैख़ के #मुरीद और फिर उसके ख़लीफ़ा बनो।
7. मौज्ज़ों (चमत्कारों), सच्चे ख़्वाबों और दुआओं की एक किताब लिखो।
ग़रीब से अमीर बने मौलवियों के पैटर्न के अहम बिन्दुओं की व्याख्या
1. आम मौलवी से ख़ास मौलवी बनो
अगर आप चिलगुड़ी, गोंडा या टाँडा में पैदा हुए हैं तो वह कोई ऐसी जगह नहीं है। जिसका ज़िक्र क़ुरआन में आया हो। सफल मौलवी अपने नाम के साथ मक्की और मदनी जैसे टाइटिल पहले ही क़ब्ज़ा चुके हैं। आपको कोई नया और मुमताज़ (यूनिक) टाइटिल लगाना होगा जैसे कि ‘बदरी’। अगर आप अपने नाम के साथ ‘बदरी’ लगा लो तो आप आम से एकदम ख़ास हो जाएंगे। हमारे शहर में एक हकीम अपने हर नुस्ख़े में एक तोला सनाय मक्की डाला करते थे। आप भी अपनी हर मजलिस में बदरी सहाबा का ज़िक्र किया करें। अपनी दुआओं में में भी बदरी सहाबा जैसी ख़ूबियाँ माँगा करें। इस तरह आप एक ख़ास मौलवी बन जाएंगे और सब लोगों की समझ में आपके नाम के साथ ‘बदरी’ लफ़्ज़ होने की वजह भी आ जाएगी। बदर और जंगे बदर का ज़िक्र क़ुरआन मजीद में आया है और अभी तक किसी मौलवी ने अपने नाम के साथ ‘बदरी’ टाइटिल लगाया भी नहीं है। अभी सहाबा ही #बदरी #सहाबा कहलाते हैं। अभी तक कोई मौलवी बदरी नहीं कहलाता। आप पहले बदरी #मौलवी हो जाएंगे। आपके नाम के साथ चिलगुड़वी, गोंडवी या टाँडवी साथ जुड़ जाए तो ज़रूरी नहीं है कि सब लोग इसे सही सही बोल सकें। वे ग़लत बोल जाएं तो अर्थ का अनर्थ भी हो सकता है। इसलिए नाम ऐसा रखो जो सब आसानी से बोल सकें। ‘बदरी’ नाम बोलना आसान है।
2. एक रजिस्टर्ड संस्था बनाओ
आप ग़रीब से अमीर बन चुके ज़िन्दा-मुर्दा मौलवियों के कामों को ग़ौर से देखो। वे एक जमाअत बनाते हैं। फिर उसके बैनर तले सहाबा की अज़्मत बयान करने के लिए आम जलसा करते हैं। जिसमें भीड़ यह सोचकर जुट जाती है कि अल्लाह के दीन की बातें हो रही हैं। चलो, सुनकर सवाब कमाते हैं। उस जलसे में उलमा ए हक़ हुकूमत की या किसी सियासी पार्टी की हिमायत करते हैं। न्यूज़ चैनल्स पर और अख़बारों में इस इवेन्ट को दिखाया जाता है। हुकूमत और सियासी पार्टियाँ इस जलसे में जुटी भीड़ देखकर उनके असर का अन्दाज़ा लगाती हैं और उलमा ए हक़ उनकी नज़र में भी ख़ास बन जाते हैं। आप भी उलमा ए हक़ के नक़्शे-कदम फर चलें। जब कभी उन्हें इलेक्शन में जीतने की ज़रूरत पड़ेगी तो वे भी हिमायत और दुआ के लिए आपके पास आएंगे।
उलमा और इमामों की जमाअत बन चुकी है। अब आप नई जमाअत किन लोगों की बना सकते हैं?, देख लें। अगर आप क़ारी हैं तो आप जमीयतुल क़ुर्रा ए हिन्द बना लें और अगर आप सिर्फ़ हाफ़िज़ हैं तो आप जमीयतुल हुफ़्फ़ाजे हिन्द बना लें। आप ख़ुद ही सदर बन जाएं और अपनी हाँ में हाँ मिलाने वाले ख़ादिमों को उसमें अहम ओहदों पर जमा दें। संस्था का क़ानून ऐसा बनाएं कि आपके बाद सदर आपका बेटा और उसके बाद उसका बेटा ही बन सके। अपनी संस्था और उसके क़ानून को किसी वकील की मदद से सरकार से रजिस्टर्ड करवा लें।
अगर आप मौलवी नहीं हैं तो किसी मस्जिद में एक टाईम अज़ान देने लगें और जमीयतुल मौअजि़्जऩ ए हिन्द बना लें। अगर आप मौलवी नहीं हैं और अज़ान देने के लायक़ भी नहीं हैं तो आप जमीयतुल ग़ुरबा ए हिन्द बना लें। अगर आप यूनिवर्सल लॉ जानते हैं तो आप 'यूनिवर्सल लॉ बोर्ड' बना लें। #कहने_का_मक़सद यह है कि जमाअत का नाम नया हो।
3. सरकार की हिमायत करो या जनता के बहुमत की आवाज़ बनो
यह बात तशरीह (व्याख्या) की मोहताज नहीं है। उलमा ए हक़ की जमाअतों का ख़ास काम यही है। आम मौलवी उसमें सिर्फ़ यूज़ होते हैं। आम मौलवियों के हाथ कुछ लगता नहीं है। सरकार राज्य सभा की सीट और पेट्रोल पंप सिर्फ़ उन ख़ास मौलवियों को देती है जो मुस्लिमों को उनके क़ाबू में कराते हैं।
4. आम लोगों के सामने वलियों की निशानी पेश करो
जैसे कि हराम माल कमाने वालों के यहाँ खाने से बचो ताकि दुआ क़ुबूल हो और इज्तेमाई (सामूहिक) दुआओं में ख़ूब रोओ। दाढ़ी लम्बी रखो। पाजामे के बजाय तहबन्द पहनो। सिर पर मस्नून पगड़ी बाँधो। जेब में एक बालिश्त लम्बी मिस्वाक रखो। ऊद और अम्बर का इत्र लगाओ। कम बोलो। चेहरा संजीदा (गम्भीर) बनाकर रखो मानो आपको दुनिया भर के लोगों के बुरे चाल चलन से गहरा दुख पहुंच रहा हो और अपने दिल में कुढ़ रहे हों। शुरू में कोशिश करनी पड़ेगी। फिर आपको आदत पड़ जाएगी। जैसे ही आप पब्लिक में आएंगे, आपका चेहरा आॅटोमैटिकली गम्भीर हो जाया करेगा। लोगों से बात करते हुए हर वक़्त तुलना करते रहो कि बदरी सहाबा कितने अच्छे थे और हम कितने गुनाहगार हैं। उसके बाद बात बात में रब से बख़्शने की दुआ करते रहो और दुआ भी पूरी इंसानियत की हिदायत की और पूरी उम्मत की बख़्शिश की किया करो क्योंकि अल्लाह के वली ऐसे ही दुआ करते हैं। अल्लाह के वली की अदाओं की नक़ल करने से भी बहुत से मौलवियों की रोज़ी में बेहिसाब इज़ाफ़ा हुआ है।
5. लोगों की ज़रूरतों को पहचानो और अपनी बातों में उनका हल पेश करो और उनकी हाजतों के लिए दुआएं करो
थोड़ी देरे के लिए अपने दुख को भूल जाओ और दूसरे लोगों के दुखों पर ध्यान दो। ज़्यादातर लोगों के दुख ये हैंः
1. औलाद नहीं हो रही है।
2. लड़का नहीं हो रहा है। हो गया है तो वह कहना नहीं मानता।
3. शादी नहीं हो रही है।
4. शादी हो गई है तो बीवी कहना नहीं मानती या शौहर दूसरी औरतों पर कमाई लुटाता है या कमाता ही नहीं है या नशा करता है या कमज़ोर है और संतुष्ट नहीं कर पाता।
5. औरत गर्भाशय पर सूजन की वजह से या किसी और वजह से गर्भधारण नहीं कर पा रही है।
6. बच्चों का दिल पढ़ाई में नहीं लगता। वे हर वक़्त खेल में लगे रहते हैं। उनके नंबर कम आते हैं। वे नमाज़ भी नहीं पढ़ते।
7. दुकान पहले चलती थी। अब ग्राहक कम आते हैं। ऐसा लगता है मानो किसी ने जादू करके सेल बंद कर दी हो।
8. घर में ख़ून पड़ा हुआ मिलता है। हमेशा घर में कोई न कोई बीमार रहता है। कमाई में बरकत नहीं रही। सिर पर क़र्ज़ हो चुका है। ऐसा लगता है जैसे किसी ने कुछ काला जादू या गंदा इलम करा दिया हो।
9. रात को डरावने ख़्वाब आते हैं।
10. बनते बनते काम बिगड़ जाते हैं। ऐसा लगता है मानो किसी की नज़र लग गई है।
11. दुश्मन पीछे लगे हैं और वे भारी पड़ रहे हैं। उनसे कैसे बचें?
12. मुक़ददमे में जीत कैसे हो?
13. ठेका कैसे मिले?
14. बंदूक़ का लाईसेंस कैसे मिले?
15. विदेश का वीज़ा कैसे मिले?
16. प्लाट और घर कैसे मिल सकता है जबकि रूपयों का इंतेज़ाम नहीं है।
17. तनाव से मुक्ति और दिल को ख़ुशी कैसे मिल सकती है?
18. अल्लाह कैसे राज़ी हो?
19. हम गुनाहों से कैसे बचें?
20. हम लोगों की मदद कैसे करें जबकि उनके साथ भलाई करो तो वे बदले में बुराई करते हैं।
21. ख़्वाब में नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दीदार कैसे हो?
22. इस्तिख़ारा कैसे करें?
23. दीन कैसे फैले?
24.लोगों को इबादतों के मुताल्लिक़ कुछ फ़िक़ही सवालों के जवाब भी दरकार होते हैं।
आप यूट्यूब पर ऐसे वीडियोज़ देखें, जिनमें आम मुस्लिम मौलवी साहब से और रूहानी इल्म रखने वालों से सवाल करते हैं तो आप ख़ूब जान सकते हैं कि उनके मसले क्या हैं और वे किस जवाब की तलाश में हैं। सब मसले पहले ही पूछे जा चुके हैं। सब मसलों के जवाब भी पहले ही दिए जा चुके हैं। आपको केवल उन्हें जानना है और अपने पास आने वालों का अन्दाज़ा करके उन्हें दोहराना भर है। थोड़े दिन बाद ही बहुत से लोग यह कहने लगेंगे कि हम हज़रते अक़दस जनाब बदरी मद्दा ज़िल्लहुल आली के पास गए थे तो जो मसले हमारे दिमाग़ में घूम रहे थे। हज़रत ने उन सबके जवाब दे दिए जबकि हमने उनसे ज़िक्र भी न किया था।
6. किसी सुपर स्टार सूफ़ी आलिम शैख़ के मुरीद और फिर उसके ख़लीफ़ा बनो
शैख़ जब मुरीद करता है तो वह मुरीद के हाथ अपने हाथों में लेकर बैअत लेता है। जो शैख़ एक साथ हज़ारों लोगों को बैअत करता है, वह सबके हाथ अपने हाथों में नहीं ले सकता। वह एक रस्सी या कोई कपड़ा पकड़कर सब मुरीदों को पकड़ा देता है। जो पीर साहब एक साथ हज़ारों को मुरीद करते हैं। वह एक सुपर स्टार शैख़ हैं यानी वह हिदायत कि एक बड़ा सितारा (नजम) हैं। क़ुरआन मजीद में नजम यानी सितारा नाम से एक सूरह भी है और बार बार नजम लफ़्ज़ आया है। आपको नज्मुल हुदा साहब का ख़लीफ़ा भी बनना है तो आप यह भी देख लें कि क्या यह पीर साहब खि़लाफ़त को रेवड़ियों की तरह बाँटते हैं? आप जिस सुपर स्टार पीर के हज़ार-बारह सौ ख़लीफ़ा देखें, उससे बैअत करके उसके मुरीद बन जाएं। आप उनका बताया ज़िक्र करेंगे तो 3 साल बाद वह आपको भी अपना ख़लीफ़ा बना देंगे। हमेशा उनके वफ़ादार रहें।
7. मौज्ज़ों (चमत्कारों), सच्चे ख़्वाबों और दुआओं की एक किताब लिखो
आप एक किताब में कु़रआन मजीद में आए मौज्ज़ों को जमा करें। जिनमें अल्लाह ने अपने बन्दों की ग़ैबी ताक़त से मदद की है। आप हदीसों में आई दुआएं उस किताब में लिखें, जिनके ज़रिए बन्दे अपने रब से मदद माँग सकें। आप कु़रआन मजीद और हदीस में आए सच्चे ख़्वाबों को भी लिखें और अगर आपने कभी कोई सच्चा ख़्वाब देखा है या आपने कभी नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत की है तो आप उसे भी लिख दें। इससे एक यूनिक किताब वुजूद में आएगी। एक एडिशन में सिर्फ़ 1100 किताबें छपवाएं और सबको अपने पास आने वालों में मुफ़्त बंटवा दें और हर ज़ुबान में अनुवाद करके छापने और बेचने या मुफ़्त बाँटने की आम इजाज़त दे दें। इससे आपका ही इन्ट्रोडक्शन ज़्यादा जगह फैलेगा। हिन्दी और इंग्लिश में ख़ुद अनुवाद करवाकर किताबें बंटवा दें। अपनी किताब को सिर्फ़ उर्दू तक महदूद रखना ख़ुद को महदूद (limited) रखना है। आप अपनी किताब में सबसे मदद की अपील करें। जो भी रक़म जिस मक़सद के लिए आए। आप उसे पूरी ईमानदारी से उसी काम में ख़र्च करें। जो रक़म ग़रीबों की मदद के लिए मिले। आप उसे ग़रीबों पर ही ख़र्च करें और सबसे पहले अपने क़रीबी रिश्तेदारों और दोस्तों पर ख़र्च करें क्योंकि आप उनकी ग़रीबी से ख़ूब वाक़िफ़ हैं और उन्हें अपने बीच मौजूद एक आलिम से अपनी भलाई की उम्मीदें भी बहुत ज़्यादा होती हैं कि इन्होंने क़ुरआन पढ़ लिया है। यह अल्लाह के मक़बूल बन्दे बन गए हैं। यह अल्लाह से दुआ करके और कोई तदबीर करके हमें बुरे हाल से नजात दिला देंगे। जब आप ऐसा कर देंगे तो उन्हें यक़ीन आ जाएगा कि मदरसे की तालीम बढ़िया है। इसमें ख़र्च कुछ नहीं आता और इसकी बरकतों से घर भर जाता है। फिर वे भी अपने बच्चों को पढ़ने के लिए मदरसों में भेजेंगे। जिससे दीन फैलेगा। मदरसे की तालीम स्कूल कालिजों की तरह बेरोजगारों की फ़ौज खड़ी नहीं करती और न ही मदरसे से पढ़े हुए मौलवी देश की बैंकों का रूपया लेकर विदेश भागे। इसके उलट वे भारत के मित्र देशों से बिल्कुल जायज़ तरीक़े से डॉलर और रियाल व दीनार लाकर भारतीय रूपए को मज़बूत करते हैं।
कोविड19 के कारण हुए लॉकडाउन से करोड़ों लोग डाऊन हुए हैं। बहुत लोगों ने फ़ीस न होने की वजह से अपने बच्चों को स्कूल के नए सेशन में एडमिशन नहीं दिलाया है। अगर मौलवियत को हिंदी और इंग्लिश मीडियम से भी कराया जाए तो बहुत से ऐसे लोग अपने बच्चों को मदरसों में दाख़िल करा देंगे जो उर्दू और फ़ारसी देखकर अपने बच्चों को मदरसों में नहीं भेजते।
जैसे जैसे देश में बेरोज़गारी और भूख बढ़ेगी, वैसे वैसे #मदरसे की मुफ़्त की शिक्षा की अहमियत बढ़ेगी। मौलवियों की संख्या का सीधा असर रूपए पर पड़ता है। अगर मौलवी घटे तो रूपया भी घटेगा यानी उसका #अवमूल्यन होगा।
इसलिए विदेशों से ज़कात-ख़ैरात का माल खींचकर भारत लाने के लिए सरकार को मौलवियों की संख्या बढ़ानी चाहिए।
हरेक मुस्लिम बहुल देश में मौलवियों का एक पूरा #सांस्कृतिक #दूतावास ही खोल देना चाहिए। मौलवी साहब की दिव्य शक्ति इतनी है कि वे सिर्फ़ अपनी तक़रीरों की डीवीडी बेचकर ही विदेशों से करोड़ों रूपया ला सकते हैं। ऐसा न टाटा कर सके और न अम्बानी कर सके जबकि मुकेश अंबानी के अंदर तो ख़ून भी अरबी है।
आपकी किताब के रूप में आपसे जुड़े हुए और न जुड़े हुए हज़ारों लोगों के हाथों में एक यूनिक किताब आएगी। जिससे उनमें उम्मीद पैदा होगी। अगर आप अपने मुरीदों में उम्मीद पैदा करते हैं तो आप उन्हें मायूसी से बचा लेते हैं और यक़ीनन मायूसी कुफ़्र है। आपसे जुड़े हुए जिन लोगों की दुआएं और मुरादें पूरी हों, उनसे भी टेस्टीमोनियल्स लिखवाकर अपनी किताब के नए एडिशन में छपवाएं। इससे भी लोगों में यक़ीन पैदा होगा कि इस किताब की दुआएं पढ़कर या आपकी बताई तदबीर पर अमल करने से काम बन सकता है।
आप ख़ुद भी मायूसी से बचें। अल्लाह ने अक़्ल और अपनी किताब का इल्म बख़्शकर सब कुछ बख़्श दिया है। मौलवी की ज़िन्दगी में मायूसी की कोई जगह नहीं है। ये चन्द मामूली से काम हैं। जिन्हें करना शरीअत में और भारतीय संविधान में जायज़ है। जिन्हें उलमा ए हक़ करके आपके लिए रौशन मिसाल छोड़ चुके हैं। आप ये काम करें। दुनिया की दौलत आपकी तरफ़ ख़ुद खिंचकर आएगी।
#atmanirbharta_coach कहता है कि
जायज़ काम करके रूपए कमाना दीन में जायज़ है। अगर फिर भी आपको रूपए की ख़ातिर ये काम करना इख़लास के खि़लाफ़ लगे तो आप ये काम महज़ अल्लाह की रिज़ा के लिए कर लें। इससे भी नतीजे वही मिलेंगे जो कि मतलूब (वांछित/wanted) हैं। आप इख़लास के साथ काम करें तो लोगों को भी इख़लास और यक़ीन के साथ दुआ करने पर बार बार ज़ोर दें क्योंकि इनमें से एक भी नहीं होता तो दुआ का वुजूद ही नहीं होता और जब दुआ दुआ ही नहीं होती तो वह क़ुबूल कैसे होगी?
आम मुस्लिमों को यह बात पता नहीं है कि इख़लास और यक़ीन दुआ के दो रुक्न हैं। हलाल माल से खाना-पीना और पहनना दुआ की क़ुबुलियत की शर्त है और दुआ करते वक़्त रोना महज़ मुस्तहब है कि न भी रोओ तो अगर रुक्न और शर्त पूरी हो रही हैं तो दुआ क़ुबूल होगी।
आम लोग ये बातें न जानने की वजह से दुआ के रुक्न और शर्त पूरी नहीं करते और रो रोकर मुसल्ला भिगो देते हैं, जोकि सिर्फ़ मुस्तहब है; लेकिन उनकी दुआ क़ुबूल नहीं होती।
आप #मौलवी हैं तो आप अपनी #दुआ के भी रुक्न और शर्तें पूरी कर लो भाई। आपकी दुआएं तो रब के दरबार में क़ुबूल हुआ करें। आम लोगों को आपसे बहुत उम्मीदें हैं। आपकी दुआएं पूरी हुआ करतीं तो आप आज ग़रीब न होते।
#atmanirbharta_ki_openuniversity
रब के नाम से #मिशनमौजले
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